जीवन के स्टेशन पे अपनों की चाह में.. खड़ा कोई मुसाफिर आपनों की राह में.. उसी एक लम्हे का इन्तजार करते हुए.. वक्त काटकर किसी का इजहार करते हुए.. गाड़ियाँ भी खड़ी लिए अपनों को बाहं में.. जीवन के स्टेशन पे अपनों की चाह में..
वक्त को देखते वो संभलकर चलता हैं... हर जगह उसे सिर्फ वक्त ही मिलता हैं... फिर भी इसीके कमी पर रोता हैं... इस लिए ओ बेवक्त भी काम पर होता हैं.. यही वक्त जीवन को निगलता हैं... सर्द या धुप हर हालमें वो पिघलता हैं.. बेदर्द वक्त हमें अनदेखाकर चलता हैं.. वक्त को देखते वो संभलकर चलता हैं...
कहीं एक तस्वीर ऐसी भी होती हैं... पता नहीं हसती हैं या रोती हैं... उसमें कुछ खास बात हैं... पता नहीं दिन हैं या रात हैं... सोना हैं ना चांदी, सिर्फ मोती हैं... कहीं एक तस्वीर ऐसी भी होती हैं...
भीड़ में कई ल़ोग खड़े हैं... कुछ ल़ोग मन पे अड़े हैं... भीड़में भी सन्नाटा छाया हैं..... हर तरफ मनका शोर पाया हैं.. सन्नाटेमें ही शोरकी जड़ें हैं... भीड़ में कई ल़ोग खड़े हैं...
हे राम तुम फिर आना....
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*हे राम तुम फिर आना, *
*अत्याचार से भरे इस ,*
*सीता को बचाना, *
*जानकी को बचाना। *
*हे राम तुम फिर आना, *
*जो भाई का स्वरुप, *
*विचारों का लक्षमण...
गुजरात का "टेम्पल रन"...
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* गुजरात के मोबाइल में टेम्पल रन गेम डाउनलोड करना था। इस लिए हमें
लोकशाही के प्ले स्टोर में जा के डाउनलोड किया।*
* टेम्पल रन जो गेम हैं वो र...
बेंगलुरु का हैं राजमहल...
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*राजभवन खड़ा हैं शान से *
*खड़ा हैं वो अपने मान से *
*हरियाली का वस्त्र पहनकर *
*दुल्हन खड़ी हैं सजधजकर *
*बेंगलुरु का हैं राजमहल *
*इसे देख मन जाता हैं बहल *...
आदर्श आग
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*काय करणार, म्हणुन दिली होती त्याना लाऊन आग*
*"आदर्श" लोका मुळे त्या कागदांचा आला होता वैताग*
*पुर्वी जळत होती पापी लोकं, कर्मकांड जळतो आता*
*चल जाळून ट...
"प्यारे दोस्तों मैं कोई लेखक या कवी नहीं हूँ, क्यूँ की मैं भी कुछ लिखना चाहता हूँ। इस ज्ञान के सागर मे डुबकी लगाकर कुछ मोती समेटकर आप लोगोंके साथ बाँटना चाहता हूँ। मुझे मालूम हैं की आप सभीको मोतियोंकी परख हैं। इस लिए कुछ गलतियां हुई तो बेहिचक बता दीजिएगा।" .....आपका एक साथी..