Monday 30 November 2009

गांधीजी के तिन बन्दर...

गाँधीजी के तिन बन्दर,
एक जुबान करके अन्दर.
दुसरा कान दबाकर.
तीसरा आंख बंदकर.
बुरा बोलो ना,
न बुरा सुनो, न देख बुरा.
सुन, बोल देख खरा खरा.
झांक ले जरा मन के अन्दर.
गांधीजी के तिन बन्दर ...

सूरज की किरणें

सूरज की किरणें पेड़ोंको चीरकर
नया सबेरा लिए आती जमिंपर
नयी सुबह, नया जोश लेकर
करतेहैं काम होशमें आकर
शुभ हो हमारा दिन,ऐसा बीनकर
सूरज की किरणें पेड़ोंको चीरकर

Saturday 28 November 2009

शायद कुत्ता भी...

शायद कुत्ता भी  हमसे रूठा।
कहता, खाना हैं झुटा।
कुत्ते, कमीने खाले यह खाना।
भूखा रहकर ना मार ताना।
महंगाई के मारसे मैं भी टुटा।
शायद कुत्ता भी हमसे रूठा।

माँ बेटा और हाथी

जरा देख मेरे साथी।
माँ, बेटा और हाथी।

तस्वीर तो यह दिखाती हैं।
प्रेम की भाषा सिखाती हैं।

जरा देख मेरे साथी।


मन्दिर लेकर फिरता हैं


मन्दिर लेकर फिरता हैं।
पैसा पैसा जमा करता हैं।
दूर रखो इस मन्दिर को।
जरा झांको अपने अन्दर को।
यह सब क्यूँ करता हैं।

मन्दिर लेकर फिरता हैं।
क्या फर्क हैं इसमें,
रथयात्रा निकालता, उसमे।
शायद ओ भी इनसे डरता हैं।
मन्दिर लेकर फिरता हैं।

सड़क को सोने दो....


मुझे भी समय ,और खाने दो।
रात को जरासा मुझे भी सोने दो।
मेरे पीठ पर खेलकर
मुझे रोल कर,
मुझे भी दवा पिने दो।
रातको जरासा मुझे भी सोने दो।