Wednesday 16 November 2011

पानी के रंग...


पानी रे पानी तेरा यह नया रंग
रौशनी से सजा हैं यह तेरा अंग
पानी में उतरे हैं रंग बिरंगी तारें
जैसे ले आयें जन्नत के रंग सारे
नज़ारा देख, रह जाते हैं सब दंग 
पानी रे पानी तेरा यह नया रंग


Sunday 9 October 2011

मंजिल की एक आस लियें...



चल पड़े हैं मंजिल की एक आस लियें....
कुछ कर गुजरने का एक अहसास लियें...
सवारी लियें चल पड़ें नए  काम के लियें...
जैसे चलती फिरती जीवन की लाश लियें ...
जीवन के सफर को ज़िंदा रखने के लिए .. 
नयी जिंदगी जीने की  एक तलाश लिए...
चल पड़े हैं मंजिल की एक आस लियें....


Thursday 25 August 2011

वक्त की सीड़ियाँ..



वक्त की सीड़ियाँ चलते ही जाते हैं..
पता  नहीं  कब मंजिल को  पाते हैं...
कभी रोते कभी तो कभी हस लेते हैं...
पहाड़ से वक्त को भी कैसे खाते  हैं...
मजिल को पाने की चाह में खोते हैं...
जीवन के सीडियों में दिन बाद रातें हैं...
वक्त की सीड़ियाँ चलते ही जाते हैं..

Sunday 7 August 2011

आग में जलकर....




आग में जलकर ही  लोहा पिघलता हैं ....
जलने के बाद उसे  आकार मिलता हैं...
कभी आँख तो कभी हात जलता हैं ..
इसी से ही पेट का चक्का चलता हैं ...
कड़े संघर्ष के बाद ही फल मिलता हैं...
धुप में जलकर ही पेड़पे फूल खिलता हैं ... 
आग में जलकर ही  लोहा पिघलता हैं ..

Thursday 19 May 2011

क़दमों के निशाँ ...


क़दमों के निशाँ रेत में छोडकर..
चलते हैं जीवन के इस मोड पर....
कई और निशाँ  साथ में समेटे,
वक्त की धारा चलती हैं मिटाकर...
क़दमों के  निशाँ  रेत में छोडकर...

पानी में दिए जलते हैं...



जहाँ पानी में दिए जलते हैं....
वहाँ पानी के फव्वारें चलते हैं ....
रात के घने अंधरे को चीरकर ,
जैसे वो बुँदे रौशनी में पलते हैं....
जहाँ पानी में दिए जलते हैं...

Friday 14 January 2011

रंग बिरंगी रंगोली..


रंग बिरंगी रंगोली..
खेलती हैं यह होली ..
लिपि अलग अलग हैं, 
लेकिन एक ही हैं बोली..
इसमें समाई हैं दुनिया,
खेलती आँखमीचोली..
रंग बिरंगी रंगोली..