Sunday 9 October 2011

मंजिल की एक आस लियें...



चल पड़े हैं मंजिल की एक आस लियें....
कुछ कर गुजरने का एक अहसास लियें...
सवारी लियें चल पड़ें नए  काम के लियें...
जैसे चलती फिरती जीवन की लाश लियें ...
जीवन के सफर को ज़िंदा रखने के लिए .. 
नयी जिंदगी जीने की  एक तलाश लिए...
चल पड़े हैं मंजिल की एक आस लियें....