Saturday 6 November 2010

नये कल की नयी सोच ..


नये कल की नयी सोच लेकर आया..
आँखों में एक नया तेज लेकर आया..
ले ले मजा अब तु एक एक पल का ..
किस बोज़ तले डूबेगा,पता नहीं कल का..
तेरा अहंकार किसे तु देकर आया...
नए कल की नयी सोच लेकर आया...

Saturday 23 October 2010

कतार में खड़े हैं.....

सवारी  की राह में, कतार में खड़े हैं...
तोल कहे तो, अपने ही मोल पर अड़े हैं..
बहस ना करो इनसे, जाना हो  जहाँ भी,
ख़ुशी से जाना, की लेने के देने पड़े हैं...
सवारी  की राह में, कतार में खड़े हैं...

Thursday 26 August 2010

समन्दर की लहरें..

दिखती हैं  समन्दर  की  लहरें...
पानी में चक्र या बुल बुले गहरे ..
या जैसा नाच रहे हैं लहरे..
पानी ही बूंदों पे रखे है पहरे ...

Monday 26 July 2010

पानी में सब मस्त हैं...

मस्ती के पानी  में सब मस्त हैं...
अपनेही  खेल में  सब व्यस्त  हैं...
पानी का यह पुराना नाता हैं..
डुबोता हैं, तो कभी हसाता हैं...
कभी आसूं बनकर रुलाता हैं... 
कभी शांति से हमें खिलाता हैं....
उग्र होकर कभी करता फस्त हैं...
मस्ती के पानी में सब मस्त हैं...

Thursday 15 July 2010

दिखता हैं गिरजाघर...


हैरान मत होना यह तस्वीर देखकर..
कुछ खास  हैं, दिखता हैं एक  गिरजाघर...
ल़ोग आते हैं देखने देश विदेशसे..
तस्वीर आयीं हैं एक अलग सन्देशसे...
क्या दिखाती हैं ज़रा पहचान लेना..
इंसान खड़ा गगनमें ज़रा जान लेना..
देखो  इसे ज़रा  मन को रोककर...
कुछ खास हैं, दिखता हैं एक गिरजाघर...

Tuesday 13 July 2010

बरसते झरने के तले..



नहाना हैं बरसते झरने के तले..
लुटने मजा सब साथ साथ चले..
बराचुक्की  दिखाता हैं पानी का खेल..
यहाँ पर बनता हैं सभी का मेल...
यहाँ पहाडोंके अंदर झरने हैं  पले...
नहाना हैं बरसते झरने के तले..

Saturday 3 July 2010

सपने लिए वो पुल आता हैं.

कल  के  सपने  लिए वो   पुल आता  हैं...
शहरी जीवन को  एक नयी दिशा देता हैं...
दफ्तर से घरका फासला कम करने...
फसे हुए जाम का हौसला कम करने...
कहलाता हैं यह मेट्रो का पुल...
आया कम करने प्रदूषण और धुल..
हर कोई इसीके प्रतीक्षा में जीता हैं...
कल के सपने लिए वो  पुल आता हैं...

Monday 28 June 2010

जीवन के स्टेशन पे...

जीवन के स्टेशन पे अपनों की  चाह में..
खड़ा  कोई  मुसाफिर  आपनों की राह में..
उसी  एक लम्हे  का  इन्तजार करते हुए..
वक्त काटकर किसी का इजहार करते हुए.. 
गाड़ियाँ भी खड़ी लिए अपनों को  बाहं में..
जीवन के स्टेशन पे अपनों की चाह में..

Sunday 27 June 2010

वक्त को देखते वो संभलकर चलता हैं...


वक्त को देखते वो  संभलकर चलता  हैं...
हर जगह  उसे सिर्फ वक्त ही  मिलता हैं...
फिर भी इसीके  कमी पर रोता  हैं...
इस लिए  ओ बेवक्त भी काम पर होता  हैं..
यही वक्त जीवन को निगलता  हैं...
सर्द या धुप हर हालमें वो   पिघलता  हैं..
बेदर्द वक्त हमें अनदेखाकर चलता  हैं..
वक्त को देखते वो  संभलकर  चलता हैं...

Friday 25 June 2010

कहीं एक तस्वीर ऐसी भी होती हैं...

कहीं  एक तस्वीर ऐसी भी  होती हैं...
पता नहीं हसती हैं या रोती हैं... 
उसमें कुछ खास बात हैं...
पता नहीं दिन हैं या रात हैं...
सोना हैं ना चांदी, सिर्फ मोती हैं...
कहीं एक तस्वीर ऐसी भी होती हैं...

Wednesday 23 June 2010

बराचुक्की का बिजलीघर....

यही हैं बराचुक्की का बिजलीघर....
१९०६ में रोशन किया था एक शहर...
आज भी खड़ा हैं पहाड़ों के अन्दर...
बेंगलुरु जो एशिया का पहला शहर....

Tuesday 22 June 2010

भीड़ में कई ल़ोग खड़े हैं...


भीड़ में कई ल़ोग खड़े हैं...
कुछ ल़ोग मन पे अड़े हैं...
भीड़में भी सन्नाटा छाया हैं.....
हर तरफ मनका  शोर पाया हैं..
सन्नाटेमें ही शोरकी जड़ें हैं...
भीड़ में कई ल़ोग खड़े हैं...

Saturday 29 May 2010

गुलाबी गुलदस्ता....

दिलके गुलदस्तें में फुलोंको युहीं सजाकर ....
जब भी  याद  आती एक फूल तोड़कर....
फेकना हमारी तरफ ज़रा गालोंमें हँसाकर...
बता देना क्या मीला गुल्दास्तेसे सर फोड़कर ....

Sunday 16 May 2010

बुढा हो गया पुल...

बुढा हो गया पुल जीवन का बोझ लेकर....
खड़ा हैं अब भी  ओ  कंकाल का बोझ लेकर.....
जवानी में कितना काम किया होगा....
दिन रात लोगों को साथ दिया होगा....
अब जीता हैं खुद का भारी बोझ लेकर.....
बुढा हो गया पुल जीवन का बोझ लेकर....

Sunday 28 March 2010

बीस्तर बेचते हैं हम...

नींद नहीं , बल्कि बिस्तर बेचते हैं हम।
इनका कहना, नींदही बेचते हैं हम।
हमें बिस्तर से कोई मतलब नहीं,
बिनबीस्तरही चैन की नींद सोते हैं हम।
नींद नहीं, बल्कि बीस्तर बेचते हैं हम।

Sunday 14 February 2010

पानी का झरना.


पहाडोंसे उतरकर नदी में मिलना,
बूंद बूंद पानी  से बना यह झरना.
नाचते  हुए  पहाड़  से उतरना.
और नदीकी रूप में  समा जाना.
बूंद बूंद पानी से बना यह झरना  

Sunday 17 January 2010

यही हैं प्यार....

देख यह संसार,
माँ बेटेका प्यार..
बच्चे को सिनेसे लगाकर ,
रखता हैं बन्दर..
यही हैं प्यार,
इंसान हो या बन्दर..

Friday 8 January 2010

सामनेवाली खिड़की....

मेरे सामने वाली खिड़की से
एक तालाब का टुकडा दीखता हैं .
उसमे कभी सूरज तो कभी चाँद
का मुखड़ा दीखता हैं.

Sunday 3 January 2010

जीवन एक यात्रा...

जीवन के सफ़र में,
ट्रेन के इंतज़ार में
बेचैन हैं एक और
मकाम की तलाश में
अपनों से मिलने की आस में