Sunday 27 June 2010

वक्त को देखते वो संभलकर चलता हैं...


वक्त को देखते वो  संभलकर चलता  हैं...
हर जगह  उसे सिर्फ वक्त ही  मिलता हैं...
फिर भी इसीके  कमी पर रोता  हैं...
इस लिए  ओ बेवक्त भी काम पर होता  हैं..
यही वक्त जीवन को निगलता  हैं...
सर्द या धुप हर हालमें वो   पिघलता  हैं..
बेदर्द वक्त हमें अनदेखाकर चलता  हैं..
वक्त को देखते वो  संभलकर  चलता हैं...

2 comments:

विनोद पाराशर said...

आप अच्छे फोटोग्राफर के साथ-साथ अच्छे कवि भी हॆं.वाकई! आपकी तस्वीरें बोलती हॆं.

विनोद पाराशर said...

आप अच्छे फोटोग्राफर के साथ-साथ अच्छे कवि भी हॆं.वाकई! आपकी तस्वीरें बोलती हॆं.